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Sad Hindi Kavita | Sad Hindi Poem | Dard ki Kavita

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Romantic Hindi Poems 

Sad Hindi Kavita | Sad Hindi Poem

तेरे बदन की बराखडी याद करते है सब
आशिको के लिए जैसे तू देशीशाब है
काजल तो आम हसीनाएं लगती। है
तेरी आंखों में तो जैसे तेजाब है
धूप में और भी निखरने लगता है
जैसे तेरा चेहरा चेहरा न होकर गुलाब है
बता तीर कितने तेरी तरकश में रखता है
में कहु खून कितना मेरे सीने में ख़ौलता है
सहरा में मार मुझको गुल गुल हो जाएगा
आशिक़ हु बहार का जादू रगों में दौड़ता है
मेने देखे बहोत पर देखा नही सैयाद तुझसा
इश्क़ करके फिर जिस्मे बुलबुल को तोलता है
कैद कर बुलबुल को दूजे गुलसन में खोलता है
तुने छूकर सोना किये वो लोग खामोश रहेंगे
तेरी महेफिल में लोग बूत से खामोश रहेंगे
मेने तन्हाई में चूमा वो पैमाना भी बोलता है

अकेला था सो हार गया तेरे लश्कर से जंग
पर देखना मेरी हार पे सिकंदर क्या बोलता है
अपने ज़मीर से मुकरनेवाला तो हु नही
मे तेरी हा में हा मिलानेवाला तो हु नही
कोई दिल-अजीज़ मीले तो बाते करू
में सबको सुनने सुनानेवाला तो हु नही
हर किसीको में खुश नही रख सकता
शायर हु फूल बेचनेवाला तो हु नही
वादे वही करूँगा जो निभाए जा सके
अब में कोई चाय बेचनेवाला तो हु नही
तू मेरी आँखे नोंच ले तो बात और है
दर के मारे नज़र चुरानेवाला तो हु नही
रात महबुब की बाहों में गुज़रती है
तेरी तरह में तारे गिननेवाला तो हु नही
शराब की बोतल सा है बदन तेरा
पर में तुजे मुह लगानेवाला तो हु नही

इससे पहेले की तबियत खराब जो जाए
चल ए दोस्त थोड़ी शराब हो जाए
होश में तो कुछ बोला नही जाता
नशे में थोड़े सवाल जवाब हो जाए
दिल के ज़ख्मो पे रोज़ याद का पानी चढ़ता है
शायद किसी रोज़ वो गुलाब हो जाए
आज तन्हा हु तो आ मिल मुझे
क्या पता कल मेरा मिलना भी ख्वाब हो जाए
उस रोज हुस्न को छोड़ मुल्क पे लिखू
जब कलम की सियाही तेजाब हो जाए

Sad Hindi Kavita

शाम ढलते ही मेने तो पैमाना उठालेना है
दर्द अपना नही तो बेगाना उठालेना है

कोई उसके सामने मेरा ज़िक्र न किया करे
वरना उस गुस्सेल ने सर ज़माना उठालेना है

उसकी आंखों के तीर हस हस खाये है
जिसने नज़र मिलते ही निशाना उठालेना है

उससे अहद फरामोशी का गिला भी फ़िज़ूल है
जिसने आते ही मज़बूरीयो का बहाना उठालेना है

उस पेड़ की छाँव में जाओगे तो धूप में रहोगे
की उसने आँख लगते ही बीछौना उठालेना है

फुरसत हो तो किसी आशिक़ की दुकान से
उस बेवफा ने दिल नाम का खिलौना उठालेना है

यू न आजमाया कर अहले मोहब्बत को ए खुदा
क्या तूने शहेर से एक और दीवाना उठालेना है

अब अच्छा नही लगता उसका नाम भी मुझको
मुजे मेरी तक़रीर से हर्फे जाना उठालेना है

यूह बलखाके शर्मा के यूह सामने आई तौबा
लहराके बलखाके यूह सामने आई तौबा
हुस्न ऐसा उसपर ये तेरी अंगड़ाई तौबा
Hatho pe rang jo mahesh lai tou a
वो रात तेरा मुजे रुक जाने को कहना
और मेरे दिल का वो ख़ौफ़े रुसवाई तौबा
अव्वल अव्वल की तेरी चाहते गज़ब थी
तेरी चाहतो के अंदाज़ भी क्या खूब थे
फिर आखिर आखिर की तेरी बेवफाई तौबा

मेरे साथ हर राह पर चल जाने की जिद्द
गुस्से में कुछ भी कह देना और तेरी खामोशी
मेरी बेबाकिया वो तेरे अदब आदाब
गुस्ताखियों में भी की वो हमनवाई तौबा

वो तेरी नमाज़ के वक़्त भी मेरा पीकर आना
गलत था, गलतियों में भी तेरी हमनवाई तौबा

Sad Hindi Poem

तू बता तीर कितने तेरी तरकश में रखता है
मैं कहूँ खून कितना मेरे सीने में ख़ौलता है
सहरा में मार मुझको गुल गुल हो जाएगा
आशिक़ हु बहार का जादू रगों में दौड़ता है
मेने देखे बहोत पर देखा नही सैयाद तुझसा
इश्क़ कर फिर जिस्मे बुलबुल को तोलता है
तुने छूकर सोना किये वो लोग खामोश रहेंगे
तेरी महेफिल में लोग बूत से खामोश रहेंगे
मेने तन्हाई में चूमा वो पैमाना भी बोलता है

चाहे टूटे हुए घर में रहना
पर ऐ दोस्त अपने शहर में रहना
परायी मंज़िल से तो कई बहेतर है
की तू ता-उम्र सफर में रहना
जिसकी पनाहों में बचपन गुज़रा
जवानी में उस साया ऐ सजर में रहना
कोई गरीब अपना अक़्स देख रोये नही
तू कभी भी न आईने के घर में रहना
खुदा के होने पर तो शक है मुजे
सो तू मा-बाप की नज़र में रहना

Khudko paak karna tha to yuh kar liya mene
Ki aaj apne hi ashko me waju kar liya mene
Shayri ke naye andaz sikhne the mujhe so
us gazal ko mahv e guftagoo kar liya mene
Kabhi sikayat hi nhi ki lakiro ki khuda se
gurez kar hatho ko surkhru kar liya mene
Jisne giraya tha use uthakar chuma mene
Apne ustad ko kabil e aabru kar liya mene
Ab Izhar e ishq to muj jeso se kya ho paye
So ye tamasha ayene ke rubru kar liya mene
Abba ab apko bhi sikayat nhi hogi mujse
Ke ishq chor naya kam suru kar liya mene

Chadhti hai ankhe tere sharab hai kya
Sharabiyo ka sawal hai jawab hai kya
Bina padhe kese ishq ke imhihan de du
Suno tumhare pas koi kitab hai kya
Batwe me chupaye firte hai tasvire teri
Sab puchte hai Wo itni nayab hai kya
Dekhnewale to par dekhenge ankhe teri
Sab kuch chipaye aesa koi naqab hai kya
Chehre padhnewale diwane ho jate hai
Par kitabe padhnewale kamiyab hai kya

Sad Hindi Poem

मोहब्बत करने से पहेले अंदाज़ा लगाते है
अब लोग दिल थोड़ा दिमाग ज्यादा लगाते है
दिल की सारी दौलत तो लूट गया वो सख्स
अब दिल के दरवाजे पर कहा ताला लगाते है
मुद्दते हो गयी उसका शहर छोड़े हमको , पर
अब भी दिल के पते में कु-ऐ-जाना लगाते है
अब भी किसी न किसी बहाने वो काम आती है
अब भी तख़ल्लुस मे नाम-ऐ-जाना लगाते है

पूछे जो ज़ाहिद क्या जानते हो जन्नत के बारे में
तो जन्नत के पते में सबिस्ताँ-ऐ-जाना लगाते है

सारे वादे मोहब्बत में हमने भी निभाये नही
हम भी नेताओ की तरह बस नारा लगाते है
महीना खत्म होते होते यह हाल हो जाता है
की सिगरेट एक रहतो है काश ज्यादा लगते है

तेरे गम ने ज़माने के गम को हिसार मे रखा है
आखिर ऐसा तो क्या तेरे लबो रुखसार में रखा है

तेरे बदन की महक तेरे लबो का ही खयाल आया
हमने जब कभी कदम किसी गुलज़ार में रखा है

तूने वफ़ा के वादे बहोत किये मगर सिर्फ किये
वही ऐब है तुझमे जो सरकार में रखा है

जान जान ही करता है तुझे हर कोई जाना
शायद रखनेवाले ने तेरा नाम बेकार में रखा है

आशिको ने कसमे खाई है शबिस्ताँ की तेरे
संगेमरमर का अफसाना तेरे दरों दीवार में रखा है

हुस्न पर से तो तेरा गुरुर कभी जाएगा नही
अब के मेने भी दिल निकालके दस्तार में रखा है

Sad Hindi Kavita | Sad Hindi Poem

कहीं तश्नगी न चली जाए जाम के आते आते
मैं कही तुजे भूल न जाऊ शाम के आते आते

अपनी सब माशुक़ाओ को याद करने बैठा था
यार बहोत देर लग गयी तेरे नाम के आते आते

कबका बेच आया था दिल तेरे बाजार मे पर
एक उम्र लगी मुझतक मेरे दाम के आते आते

कितने वक़्त में जवाब आया है ध्यान रखना
राज़ खुल भी सकते है पैगाम के आते आते

वफ़ा के बदले वफ़ा मिलेगी देर से ही सही
ऐसा कहनेवाले मर गए अंजाम के आते आते

शराबी से श्याम, सबसे पूछा उदासी का सबब
फिर देर न हुई मोहब्बत तेरे नाम के आते आते

3.

‘ज़ख़म’
महफ़िल में सुनने वालों के दम निकले
पी कर जो तेरे मैख़ाने से हम निकले ।

कहीं तश्नगी न चली जाए जाम के आते आते
मैं कही तुजे भूल न जाऊ शाम के आते आते

दहलीज़ को बार बार चूमते रहे
बूतकदे से जब देखा की सनम निकले ।

तेरी ज़ुल्फ तो सुलझते-सुलझते सुलझ ही गयी ,
मुश्किल तो रोज़गार के पेचोखम निकले ।

टूट चुकी है दिल की सितार जाने कब से ,
अब तुम्ही कहो सरगम निकले या ग़म निकले ।

याद आते है वो इश्क़ में दुबे हुए शेर
किताबे माज़ी से जब किस्सा ए सनम निकले

गुल-ए-सुख़न समझ के जिसपे दाद दी है ,
क्या पता वो किसी दिल के ज़ख़म निकले ।

हमारी बिगड़ी हुई आदतों की वजह सोचना ,
शायद तेरी तोड़ी हुई कोई क़सम निकले ।

– भौमिक त्रिवेदी

अच्छा है तुम हुस्न पे हिजाब रखती हो
मेरी जान तुम हुस्न जो बेहिसाब रखती हो
छुकर तुम्हारे अश्क़ मेरी उंगलिया जलने लगी
हुस्न शोला है जज़्बातों में भी आग रखती हो

कहीं तश्नगी न चली जाए जाम के आते आते
मैं कही तुजे भूल न जाऊ शाम के आते आते
अपनी सब माशुक़ाओ को याद करने बैठा था
यार बहोत देर लग गयी तेरे नाम के आते आते

रख आता हु में जिसे तुम्हारी किताब पर
जचता है ज़ुल्फ़ में जब वो गुलाब रखती हो

तुम्हारे एक इशारे पे मर मिटे आशिक़ कई
तुम हो की मेरे साथ मरने का ख्वाब रखती हो

छुकर अश्क तुम्हारे मेरी उंगलिया जलने लगी
हुस्न शोला है जज़्बातों में भी आग रखती हो

आज ईद है और तुम चेहरे में महताब रखती हो
लग गयी है तुम्हरी गली में आशिको की भीड़

Sneha shukla

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